सुंदरनगर की नलवाड़ 9 से 17 चेत्र (मार्च) तक मनाई जाती है । यह प्रदेश का सबसे बड़ा पशु मेला है और बिलासपुर नलवाड़ से कई गुना बड़ा है । इस पशु मेले में जिला मण्डी, काँगड़ा,बिलासपुर तथा हमीरपुर तक के कृषक बैल खरीदने आते हैं | यह समझा जाता है कि यह सबसे पुरातन पशु मेला है । बिलासपुर, भंगरोटू की नलवाड़ बाद में आरम्भ हुई ।
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Beginning of Suket Nalwad
ऐसा भी विश्वास है कि राजा चेतसेन ( 2) के समय राजा नल सुंदरनगर (सुकेत) आए | राजा नल ने परामर्श दिया कि लोगों की आर्थिक स्थिति के सुधार के लिए पशु व्यापार मेला आरम्भ किया जाए। राजा चेतसेन ने यह मेला आरम्भ किया और इसका नाम नलवाड़ रखा |
Events of Sunder nagar mela
1. Pashu Mela (पशु मेला)
मेला लिंडी खड्ड में एक किलोमीटर से ऊपर के क्षेत्र में मनाया जाता हे । दूर-दूर तक खड्ड तथा आसपास के क्षेत्रों में पशु-ही-पशु दिखाई देते हैं | मेले के छःसात दिनों तक खड्ड तथा खेतों में पशु-ही-पशु रहते हैं । वर्ष 1963 में 70,000 पशु इस मेले में आए

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पशु मेले के साथ-साथ अब सुंदरनगर बाजार तथा आगे तक दुकानें सजती हैं। कृषि भवन के साथ ग्राउंड में रात्रि को सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं | नीचें खड्ड के पास कुश्ती का आयोजन भी किया जाता है।
यह मेला अब स्थानीय कमेटी द्वार आयोजित किया जाता है |
बैलों की उम्दा जोड़ी लेने के लिए आसपास के जिलों के लोग ‘सुकेत‘ का इंतजार करते हैं। सुंदरगगर नलवाड़ को पहले ‘सुकेत’ के नाम से ही जाना जाता था। लोग कई दिनों का सफर कर सुकेत में पहुँचते थे। सुकेत से लाए बैल देखने के लिए पूरा-का-पूरा गाँव उमड़ आता। यह परम्परा अभी तक जीवित है। अब लोग सड़क सुविधा के कारण ट्रकों तथा छोटे बाहनों में भरकर बैल ले जाते हैं |
बल्ह क्षेत्र के लोग बैलों की उम्दा नस्ल पालने के लिए मशहूर हैं। वे सुकेत से बछड़े खरीदकर उन्हें पाल-पोसकर कुछ सालों बाद बेच देते हैं। बल्ह क्षेत्र के सुंदर सजीले बैल देखते ही बनते हैं ।
Conclusion
अधिकांश व्यवंसायी अब मैदानों से आते हैं जो सभी नलवाड़ मेले निभाते हैं। शेष व्यापारी और जमींदार आसपास के क्षेत्रों के होते हैं |